रघुवीर सहाय कौन से काल के कवि हैं? - raghuveer sahaay kaun se kaal ke kavi hain?

रघुवीर सहाय (English – Raghuvir Sahay) हिन्दी के साहित्यकार व पत्रकार थे। इसके साथ ही वे एक प्रभावशाली कवि होने के साथ ही साथ कथाकार, निबंध लेखक और आलोचक थे। रघुवीर सहाय ‘नवभारत टाइम्स’, दिल्ली में विशेष संवाददाता रहे। ‘दिनमान’ पत्रिका के 1969 से 1982 तक प्रधान संपादक रहे। उनकी मुख्य रचनाएँ ‘लोग भूल गये हैं’, ‘आत्महत्या के विरुद्ध’, ‘हंसो हंसो जल्दी हंसो’, ‘सीढ़ियों पर धूप में’ आदि। उन्हें वर्ष 1982 में उनकी पुस्तक ‘लोग भूल गये हैं’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।

Contents hide

1 रघुवीर सहाय की जीवनी – Raghuvir Sahay Biography Hindi

2 संक्षिप्त विवरण

2.1 जन्म

2.2 शिक्षा

2.3 करियर

2.4 रचना के विषय

2.5 रचनाएँ

2.5.1 काव्य संग्रह

2.5.2 कविताएँ

2.5.3 बाल कविताएँ

2.6 सम्मान

2.7 निधन

रघुवीर सहाय की जीवनी – Raghuvir Sahay Biography Hindi

रघुवीर सहाय कौन से काल के कवि हैं? - raghuveer sahaay kaun se kaal ke kavi hain?
रघुवीर सहाय कौन से काल के कवि हैं? - raghuveer sahaay kaun se kaal ke kavi hain?
रघुवीर सहाय की जीवनी

संक्षिप्त विवरण

नामरघुवीर सहायपूरा नामरघुवीर सहायजन्म9 दिसंबर 1929जन्म स्थानलखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारतपिता का नाम–माता का नामराष्ट्रीयताभारतीयधर्म
हिन्दूजाति

जन्म

रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसंबर 1929 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। उन्होंने 1955 में विमलेश्वरी सहाय से विवाह किया।

शिक्षा

रघुवीर सहाय 1951 में ‘लखनऊ विश्वविद्यालय’ से अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. किया और साहित्य सृजन 1946 से प्रारम्भ किया। अंग्रेज़ी भाषा में शिक्षा प्राप्त करने पर भी उन्होंने अपना रचना संसार हिंदी भाषा में रचा। ‘नवभारत टाइम्स के सहायक संपादक तथा ‘दिनमान साप्ताहिक के संपादक रहे।आईएएसके बाद स्वतंत्र लेखन में रत रहे। इन्होंने प्रचुर गद्य और पद्य लिखे हैं। रघुवीर सहाय ‘दूसरा सप्तक के कवियों में हैं। मुख्य काव्य-संग्रह हैं : ‘आत्महत्या के विरुध्द, ‘हंसो हंसो जल्दी हंसो, ‘सीढियों पर धूप में, ‘लोग भूल गए हैं, ‘कुछ पते कुछ चिट्ठियां आदि। ये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं।

करियर

रघुवीर सहाय दैनिक ‘नवजीवन’ में उपसंपादक और सांस्कृतिक संवाददाता रहे। ‘प्रतीक’ के सहायक संपादक, आकाशवाणी के समाचार विभाग में उपसंपादक, ‘कल्पना'[2] तथा आकाशवाणी[3], में विशेष संवाददाता रहे। ‘नवभारत टाइम्स’, दिल्ली में विशेष संवाददाता रहे। समाचार संपादक, ‘दिनमान’ में रहे। रघुवीर सहाय ‘दिनमान’ के प्रधान संपादक 1969 से 1982 तक रहे। उन्होंने 1982 से 1990 तक स्वतंत्र लेखन किया।

रचना के विषय

सहाय ने अपनी कृतियों में उन मुद्दों, विषयों को छुआ जिन पर तब तक साहित्य जगत् में बहुत कम लिखा गया था। उन्होंने स्त्री विमर्श के बारे में लिखा, आम आदमी की पीडा ज़ाहिर की और 36 कविताओं के अपने संकलन की पुस्तक ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ के जरिए द्वंद्व का चित्रण किया। सहाय एक बडे और लंबे समय तक याद रखे जाने वाले कवि हैं। उन्होंने साहित्य में अक्सर अजनबीयत और अकेलेपन को लेकर लिखी जाने वाली कविताओं से भी परे जाकर अलग मुद्दों को अपनी कृतियों में शामिल किया। सहाय राजनीति पर कटाक्ष करने वाले कवि थे। मूलत: उनकी कविताओं में पत्रकारिता के तेवर और अख़बारी तजुर्बा दिखाई देता था। भाषा और शिल्प के मामले में उनकी कविताएं नागार्जुन की याद दिलाती हैं। अज्ञेय की पुस्तक ‘दूसरा सप्तक’ में रघुवीर सहाय की कविताओं को शामिल किया गया। उस दौर में तीन नाम शीर्ष पर थे – गजानन माधव मुक्तिबोध फंतासी के लिए जाने जाते थे, शमशेर बहादुर सिंह शायरी के लिए पहचान रखते थे, जबकि सहाय अपनी भाषा और शिल्प के लिए लोकप्रिय थे।

                
                                                                                 
                            "मत पूछना हर बार मिलने पर कि "कैसे हैं"
सुनो, क्या सुन नहीं पड़ता तुम्हें संवाद मेरे क्षेम का,
लो, मैं समझता था कि तुम भी कष्ट में होंगी
तुम्हें भी ज्ञात होगा दर्द अपने इस अधूरे प्रेम का।"

"जब तुम बच्ची थीं
तो
मैं तुम्हें रोते हुए नहीं देख सकता था

अब तुम रोती हो
तो
देखता हूँ मैं !"

"एक शोर में अगली सीट पे था
दुनिया का सबसे मीठा गाना
एक हाथ में मींजा दिल था मेरा
एक हाथ में था दिन का खाना।"

रघुवीर सहाय प्रगतिशील काव्यधारा 'नई कविता' के प्रतिनिधि कवि हैं। उनकी कविताओं का मूल स्वर यथार्थ का है, जो मूल रूप से आज़ादी के बाद के भारत का यथार्थ है। अज्ञेय के संपादन में प्रकाशित 'दूसरा सप्तक' के कवि के रूप में रघुवीर सहाय की सहित्यिक परिवेश में बहुत चर्चा हुई। उनके साहित्य में पत्रकारिता का और उनकी पत्रकारिता पर साहित्य का गहरा असर रहा है। सहाय जी की चेतना पत्रकार की तथा संवेदना एक कवि की है। यही कारण है कि ख़बरों का और रोज़मर्रा की हलचल का बेहद नायाब प्रयोग उनकी कविता में दिखाई पड़ता है।

पत्रकारिता एवं साहित्य कर्म में रघुवीर सहाय कोई फ़र्क़ नहीं मानते थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उन्होंने एक नई और क्रिएटिव भाषा गढ़ी। भाषा को लेकर एक ख़ास चेतना और अनूठा शिल्प रघुवीर सहाय की कविताओं की अपनी अलग पहचान बनाते हैं।

रघुवीर सहाय की आधुनिक सभ्य समाज के लिए न्याय, समता, स्वतंत्रता, और बंधुत्व जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर उनकी गहरी आस्था थी। उन्होंने जहां भी इसका अभाव देखा, उसके ख़िलाफ़ आवाज उठाई।

निर्धन जनता का शोषण है
कहकर आप हंसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कहकर आप हंसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कहकर आप हंसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कहकर आप हंसे
कितने आप सुरक्षित होंगे मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पाकर फिर से आप हंसे

रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसंबर 1929 को लखनऊ में हुआ। लखनऊ विश्वविद्यालय से 1951 में उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य से एमए किया। लखनऊ से प्रकाशित अख़बार दैनिक नवजीवन से 1949 में पत्रकारिता की शुरुआत की। 1951 में दिल्ली आ गए और एक साल तक प्रतीक में बतौर सहायक संपादक काम किया। इसके बाद 1957 तक वे आकाशवाणी के समाचार विभाग में उपसंपादक रहे। उन्होंने अपनी पहली कविता 1946 में लिखी थी।

कविता संग्रह 'लोग भूल गए हैं ' के लिए 1984 में रघुवीर सहाय को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

'पत्रकार और साहित्यकार में कोई अंतर नहीं होता'

रघुवीर सहाय कौन से काल के कवि हैं? - raghuveer sahaay kaun se kaal ke kavi hain?
रघुवीर सहाय कौन से काल के कवि हैं? - raghuveer sahaay kaun se kaal ke kavi hain?

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक रघुवीर सहाय की प्रतिनिधि कविताएं में संपादक सुरेश शर्मा लिखते हैं, "उनका काव्य उनके पत्रकार व्यक्तित्व से पैदा होता है। सहाय जी का सौंदर्यशास्त्र ख़बर का सौंदर्यशास्त्र है। इसलिए उनकी भाषा ख़बर की भाषा है और ज़्यादातर कविताओं की विषयवस्तु ख़बरधर्मी। वे अपनी कविताओं के विषय समाज में मुनष्य की बदलती जीव-स्थितियों में तलाशते हैं। भारतीय लोकतंत्र पद्धति में मतदाताओं की अरक्षित-असहाय ज़िंदगी की ख़बरें उन्होंने अपनी कविताओं में लिखी हैं।

फिर जाड़ा आया फिर गर्मी आई
फिर आदमियों के पाले से लू से मरने की ख़बर आई
न जाड़ा ज़्यादा था न लू ज़्यादा
तब कैसे मरे आदमी
वे खड़े रहते हैं तब नहीं दिखते
मर जाते हैं तब लोग जाड़े और लू की मौत बताते हैं 

ये वे ख़बरें हैं जो अख़बारी ख़बरों की विधागत सीमा के कारण वहां नहीं समा सकती थीं। ख़बरों का ये रूप कविता में ही अभिव्यक्त हो सकता था। सहाय जी की कविता में वक्तव्य है, विवरण है, संक्षेप है। उसमें प्रतीकों और बिंबों का घटाटोप उलझाव नहीं है। वे निहायत ही पारदर्शी भाषा का इस्तेमाल करते थे।

सहाय जी की एक कविता है, 'वह कौन था' -

"वह जनसभा न थी राष्ट्रीय दिवस था
एक बड़े राष्ट्र का
कितने आरामदेह होते हैं अन्य बड़े राष्ट्रों के
राष्ट्रदिवस दिल्ली में
एक मंत्री भीड़ के बीच खोया सा सहसा मिल गया मुझे
देखते ही बोला-- अच्छे हो!
मैंने कहा-- हुज़ूर ने पहचाना!
तब कहने लगा जैसे यही पहचान हो
तुम अभी संकट से मुक्त नहीं हुए हो
फिर जैसे शक हो गया हो कि भूल की--
क्षण भर घूरा मुझे
बोला-- कल मेरे पास आना तब बाक़ी बताऊँगा

जाने कौन व्यक्ति था जिसको इसने मुझे समझा।"

लिखने का कारण पुस्तक में वे लिखते हैं, "पत्रकार और साहित्यकार में कोई अंतर है क्या? मैं मानता हूं कि नहीं है।  इसलिए नहीं कि साहित्यकार रोज़ी के अख़बार में नौकरी करते हैं, बल्कि इसलिए कि पत्रकार और साहित्यकार दोनों नए मानव संबंध की तलाश करते हैं। दोनों ही दिखाना चाहते हैं कि दो मनुष्यों के बीच नया संबंध क्या बना। पत्रकार तथ्यों को जुटाता है और उन्हें क्रमबद्ध करते हुए उन्हें उस परस्पर संबंध से नहीं अलग नहीं करता जिससे वे जुड़े हुए और क्रमबद्ध हैं। उसके उपर तो यह लाज़िमी होता है कि वो आपको तर्क से विश्वस्त करे कि यह हुआ तो यह इसका कारण है, ये तथ्य हैं और ये समय, देश, काल परिस्थिति आदि हैं जिनके कारण ये तथ्यों पूरे होते हैं। साहित्यकार इससे अलग कुछ करता है। साहित्यकार के लिए तथ्यों की जानकारी उतनी ही अनिवार्य है जितनी पत्रकार के लिए। लेकिन तथ्यों के परस्पर संबंध को जानबूझकर तोड़कर साहित्यकार उसे नए सिरे से क्रमबद्ध करता है, और इस तरह से नए संपूर्ण सत्य को रचता है, जो एक नया यथार्थ है। एक संभव यथार्थ। पत्रकार के लिए यथार्थ वही है जो संभव हो चुका है। साहित्यकार के लिए वह है जो संभव हो सकता है।"

'इंसानों में ग़ैर बराबरी को मानने वाला रचनाकार नहीं हो सकता'

रघुवीर सहाय कौन से काल के कवि हैं? - raghuveer sahaay kaun se kaal ke kavi hain?
रघुवीर सहाय कौन से काल के कवि हैं? - raghuveer sahaay kaun se kaal ke kavi hain?

रघुवीर सहाय की समूची काव्य-यात्रा का उद्देश्य ऐसी जनतांत्रिक व्यवस्था बनाना है जिसमें शोषण, अन्याय, हत्या, आत्महत्या, विषमता, दासता, राजनीतिक संप्रभुता, जाति-धर्म में बंटे समाज के लिए कोई जगह न हो। जिन आशाओं और सपनों से आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी उन्हें साकार करने में जो बाधाएं आ रही हों, उनका लगातार विरोध करना उनका रचनात्मक लक्ष्य रहा है।

रघुवीर सहाय हर तरह की ग़ैरबराबरी का विरोध करते हैं। वे लिखते हैं, "अगर इंसान और इंसान के बीच एक ग़ैरबराबरी का रिश्ता है और उस रिश्ते को कोई आदमी मानता है कि ऐसे ही रहना चाहिए, तो वह कोई रचना नहीं कर सकता।" आजादी के बाद के भारतीय समाज में ग़ैरबराबरी के सामंती मूल्य की बहुत ही बारीक़ी से पड़ताल करते हैं, क्योंकि ग़ैरबराबरी की चेतना बने रहने से लोकतंत्र का विकास नहीं हो सकता और अधिनायकवाद के पनपने के लिए ज़मीन तैयार होती है। ‘अधिनायक’ कविता में वे लिखते हैं,

राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है

मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चंवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है

पूरब-पश्चिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा,उनके
तमगे कौन लगाता है

कौन-कौन है वह जन-गण-मन
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है 

सहाय जी की के काव्य संसार में अगर समाज की परेशान ज़िंदगी का हाल दर्ज है तो मानव मन की सहज प्रवृतियों जैसे प्रेम, हास्य, व्यंग्य और करुणा की अभिव्यक्ति भी है। प्रकृति को उन्होंने गहरी ऐंद्रिकता के साथ चित्रित किया है। 1954 में लिखी उनकी कविता बौर को देखिए,

"नीम में बौर आया
इसकी एक सहज गंध होती है
मन को खोल देती है गंध वह
जब मति मंद होती है
प्राणों ने एक और सुख का परिचय पाया"

"कौंध । दूर घोर वन में मूसलाधार वृष्टि
दुपहर : घना ताल : ऊपर झुकी आम की डाल
बयार : खिड़की पर खड़े, आ गई फुहार
रात : उजली रेती के पार; सहसा दिखी
                    शान्त नदी गहरी
मन में पानी के अनेक संस्मरण हैं।"

"क्या होगा इस कभी-कभी के मधुर मिलन की घड़ियों का
जीवन की टूटी-टूटी इन छोटी-छोटी कड़ियों का
कैसे इनकी विशृंखलता मुझको-तुझको जोड़ेगी
क्या कल नाता वही जुड़ेगा आज जहा यह तोड़ेगी?"

दूसरा सप्तक, सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हंसो हंसो जल्दी हंसो (कविता संग्रह), रास्ता इधर से है (कहानी संग्रह), दिल्ली मेरा परदेश और लिखने का कारण (निबंध संग्रह) सहाय जी की प्रमुख कृतियां हैं।

आगे पढ़ें

'पत्रकार और साहित्यकार में कोई अंतर नहीं होता'

रघुवीर सहाय कौन से युग के कवि थे?

रघुवीर सहाय आधुनिक काल के कवि थे। सही विकल्प है ( ग) आधुनिक काल के रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसंबर 1929 में लखनऊ में हुआ था।

रघुवीर सहाय की कविता कला क्या?

रघुवीर सहाय की कविताओं की दूसरी विशेषता है छोटे या लघु की महत्ता का स्वीकार । वे महज़ बड़े कहे जाने वाले विषयों या समस्याओं पर ही दृष्टि नहीं डालते, बल्कि जिनको समाज में हाशिए पर रखा जाता है, उनके अनुभवों को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाते हैं।

रघुवीर सहाय की कविता कौन सी है?

रचनाएँ दूसरा सप्तक, सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो हँसो जल्दी हँसो (कविता संग्रह), रास्ता इधर से है (कहानी संग्रह), दिल्ली मेरा परदेश और लिखने का कारण(निबंध संग्रह) उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।

रघुवीर सहाय का कवि कर्म किसकी रचना है?

उनकी कविता में तन्त्र की बेदर्दी और कपट का तीखा प्रकटन है. युवा कवि और चर्चित आलोचक शिरीष कुमार मौर्य ने रघुवीर सहाय के कवि कर्म पर विस्तार से दृष्टी डाली है और गहरी सामाजिक अंतर्दृष्टि से उनकी कविताओं का समझने का प्रयास किया है.