नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया? - netaajee ka orijinal chashma kahaan gaya?

उत्तर: हालदार साहब 15 दिन बाद जाते समय यह निर्णय कर चुके थे कि उस चौराहे पर नहीं उतरेंगे जहां पर बिना चश्मे की मूर्ति है लेकिन आदत से मजबूर आंखें चौराहे आते हैं मूर्ति की तरफ उठ गई कुछ ऐसा देखा कि ड्राइवर को तुरंत गाड़ी रोकने के लिए कहा फिर फिर गाड़ी से तुरंत कूदकर मूर्ति की ओर जाते हैं और देखते हैं कि नेता जी की आंखों पर सरकंडे का बना छोटा सा चश्मा रखा हुआ है जो बच्चें बना लेते है और इसे  देखकर हालदार साहब भावुक हो जाते हैं कि अभी भी बच्चो में देशभक्ति मौजूद है।

उत्तर: कस्बा बहुत बड़ा नहीं था; उसमें कुछ मकान ही पक्के थे, एक ही बाज़ार था, लड़के-लड़कियों का एक-एक स्कूल, सीमेंट का छोटा-सा कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक नगरपालिका थी। 


(ख) 'नगरपालिका भी कुछ-न-कुछ करती रहती थी'- स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कस्बे की नगरपालिका कभी किसी सड़क को पक्का करवा देती, कभी कुछ पेशाबघर बनवा देती, कभी कबूतरों की छतरी बनवा देती, तो कभी कवि सम्मेलन करवा देती थी।


(ग) सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा किसने, कहाँ लगवाई? उसे बनाने का काम किसे सौंपा गया और क्यों?

उत्तर : कस्बे की नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने कस्बे के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी थी। मूर्ति बनाने वाला स्थानीय स्कूल का इकलौता ड्राइंग मास्टर मोतीलाल था। उसे यह काम इसलिए सौंपा होगा, क्योंकि एक तो बोर्ड की शासनावधि समाप्त होने वाली थी, इसलिए किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर दिया जा सकता था और दूसरा ड्राइंग मास्टर ने महीने-भर में मूर्ति बना देने का विश्वास दिलाया था।


(घ) नेताजी की मूर्ति की क्या विशेषताएँ थीं? मूर्ति में किस चीज़ की कमी थी?

उत्तर : मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची थी- जिसे कहते हैं बस्ट और वह सुंदर थी। नेताजी सुंदर लग रहरे थे। वे फ़ौजी वर्दी में थे। मूर्ति को देखते ही 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो'-वगैरह नारे याद आने लगते थे। नेता जी की मूर्ति में एक चीज़ की कमी थी-नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। अर्थात् चश्मा संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था।


क्या मतलब? क्यों चेंज कर देता है? हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए?


(क) पानवाले ने कैप्टन चश्मेवाले द्वारा नेताजी की मूर्ति का चश्मा चेंज करने के संबंध में क्या बताया?

उत्तर : नेताजी की मूर्ति को चश्मा पहनाने का काम चश्मा बेचने वाला एक बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी करता था, जिसे कैप्टन कहते थे, जो घूम-घूमकर चश्मे बेचा करता था। वह अपने चश्मों में से एक चश्मा मूर्ति पर लगा देता था। जब किसी ग्राहक को मूर्ति पर लगे चश्मे को खरीदने की इच्छा होती, तो वह मूर्ति से चश्मा हटाकर वहाँ कोई दूसरा फ्रेम लगा देता था।


(ख) पानवाले की बात सुनकर भी हालदार साहब को कौन-सी बात अभी भी समझ में नहीं आई? 

 उत्तर : पानवाले की बात सुनकर भी हालदार साहब को एक बात अभी भी समझ में नहीं आई कि नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?


(ग) पानवाले ने हालदार साहब की बात का क्या उत्तर दिया? उसका उत्तर उसके लिए तथा हालदार साहब के लिए अलग-अलग किस प्रकार था?

उत्तर : पानवाले ने मुस्कुराते हुए कहा कि मास्टर बनाना भूल गया। पानवाले के लिए यह मज़ेदार बात थी, लेकिन हालदार साहब के लिए चकित और द्रवित करने वाली बात थी। हालदार साहब को यह सब बड़ा विचित्र और कौतुक भरा लग रहा था।


(घ) मूर्ति बनाने वाले के संबंध में हालदार साहब के मन में किस प्रकार के भाव जाग्रत हुए?

उत्तर : हालदार साहब ने मन में सोचा कि वह ठीक ही सोच रहे थे। मूर्ति के नीचे लिखा 'मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल' वाकई कस्बे का अध्यापक था। बेचारे ने महीने भर में मूर्ति बना देने का वादा किया होगा। उसने मूर्ति बना भी ली होगी, लेकिन पत्थर में पारदर्शी चश्मा कैसे बनाया जाए काँचवाला—यह तय नहीं कर पाया होगा या कोशिश की होगी और असफल रहा होगा या बनाते बनाते 'कुछ और बारीकी' के चक्कर में चश्मा टूट गया होगा या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा। हालदार साहब को यह सब कुछ विचित्र और कौतुकभरा लग रहा था।


नहीं साब, वो लँगड़ा क्या जाएगा फौज में? पागल है, पागल। वो देखो वो आ रहा है। आप उसी से बात कर लो। फोटो-वोटो छपवा दो उसका कहीं।


(क) हालदार को पानवाले की कौन-सी बात अच्छी नहीं लगी और क्यों? 

उत्तर: हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। 


(ख) सेनानी न होने पर भी चश्मेवाले को कैप्टन क्यों कहा जाता था? सोचकर लिखिए।

उत्तर : कहानीकार एक सामान्य नागरिक 'कैप्टन चश्मेवाले' के माध्यम से देश के करोड़ों नागरिकों के योगदान की चर्चा कर रहे हैं, जो अपनी-अपनी तरह से देश के निर्माण में सहयोग देते हैं तथा अपनी देशभक्ति का परिचय देते हैं। इसलिए सेनानी न होने पर भी चश्मेवाले को कैप्टन कहा जाता था।


(ग) चश्मेवाले को देखकर हालदार साहब अवाक् क्यों रह गए ? चश्मेवाले का परिचय दीजिए। 

उत्तर : जब हालदार ने चश्मेवाले को देखा तो वे हैरान रह गए। उन्होंने देखा कि एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गांधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टँगे बहुत-से चश्मे लिए गली से निकला और एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। उसे देख वे बहुत हैरान हुए।


(घ) हालदार साहब पानवाले से क्या पूछना चाहते थे और क्यों? पानवाले ने उनकी बात पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की?

उत्तर : हालदार साहब उस बूढ़े की दयनीय दशा को देखकर बहुत चक्कर में पड़ गए। वे पूछना चाहते थे कि लोग इसे कैप्टन क्यों कहते हैं? क्या यही इसका वास्तविक नाम है? लेकिन पानवाले ने साफ बता दिया कि अब वह इस बारे में और बात करने को तैयार नहीं।



बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का, जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी, जवानी-जिंदगी सब कुछ होम कर देने वालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है?


(क) उपर्युक्त कथन का आशय स्पष्ट करें।

उत्तर : जब हालदार साहब ने पानवाले से पूछा कि क्या कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है या आज़ाद हिंद फ़ौज का भूतपूर्व सिपाही? तो पानवाले ने मुस्कराकर बताया कि वह लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में? पागल है पागल ! हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का मज़ाक उड़ाया जाना बहुत बुरा लगा। वे सोचने लगे, जो लोग अपने देश पर अपना सब कुछ न्योछावर कर देने वालों का भी मज़ाक उड़ाते हैं, उनका भविष्य क्या होगा?


(ख) हालदार साहब को कैप्टन चश्मेवाला देशभक्त क्यों लगा? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: हालदार साहब को कैप्टन चश्मेवाला देशभक्त इसलिए लगा क्योंकि एक तो वह गांधी टोपी पहनता था, दूसरा उसमें देशभक्ति की भावना इसलिए दिखाई देती थी क्योंकि एक देशभक्त नेताजी की बिना चश्मे वाली मूर्ति उसे न केवल बुरी लगती थी, बल्कि आहत करती थी, इसीलिए वह अपने गिने-चुने फ्रेमों में से एक फ्रेम नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता था। यही कारण थे कि हालदार साहब को कैप्टन चश्मेवाला देशभक्त लग रहा था।


(ग) पंद्रह दिन बाद जब हालदार साहब उस कस्बे से गुज़रे, तो उनके मन में कौन-कौन से विचार आ रहे थे ?

उत्तर : पंद्रह दिन बाद जब हालदार साहब उस कस्बे से गुज़रे, तो उनके मन में विचार आए कि कस्बे के मुख्य मुख्य चौराहे पर नेताजी की मूर्ति अवश्य स्थापित होगी, परंतु उनकी आँखों पर कोई चश्मा नहीं होगा, क्योंकि मास्टर चश्मा बनाना भूल गया और कैप्टन मर गया है। इसलिए वह वहाँ रुकना भी नहीं चाहते थे। बाज़ार के


(घ) चौराहे पर रुकते हुए हालदार साहब क्या देखकर भावुक हो गए और क्यों?

उत्तर: जब हालदार साहब कस्बे के चौराहे से निकल रहे थे, आदत से मज़बूर उन्होंने मूर्ति की ओर देखा और तेज़ कदमों से मूर्ति की ओर लपके और ठीक सामने जाकर अटेंशन में खड़े हो गए। हालदार साहब यह देखकर भावुक हो गए कि मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं। उनकी आँखें भर आईं। 

नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ था?

प्रस्तुत कथन में नेताजी का ओरिजिनल चश्मा से तात्पर्य नेताजी के बार-बार बदलने वाले फ्रेम से है। मूर्तिकार ने नेताजी की मूर्ति बनाते समय चश्मा नहीं बनाया थानेताजी बिना चश्मे के यह बात एक गरीब देशभक्त चश्मेवाले कैप्टन को पसंद नहीं आती थी इसलिए वह नेताजी की मूर्ति पर उसके पास उपलब्ध फ्रेमों से एक फ्रेम लगा देता था

नेताजी का चश्मा मूल भाव क्या है?

पाठ में देश भक्ति की भावना का भावुक व सम्मानीय रूप दिखायी देता है। कैप्टन चश्मे वाले की मूर्ति पर चश्मा लगाना व उसकी मृत्यु के पश्चात् बच्चों द्वारा हाथ से बनाया गया सरकंडे का चश्मा लगाना हमें यह संदेश देता है कि हर व्यक्ति को अपने देश के लिए अपने सामर्थ्य के अनुसार व समर्पण की भावना के साथ योगदान देना चाहिए।

1 नेताजी की मूर्ति पर चश्मा कौन लगाता था?

पूछने पर पान वाले ने हालदार साहब को बताया कि मूर्ति का चश्मा कैप्टन बदलता है। कैप्टन को बिना चश्मे वाली नेताजी की मूर्ति आहत करती थी इसलिए उसने उस मूर्ति पर चश्मा लगा दिया। अब यदि कोई ग्राहक उससे नेता जी की मूर्ति पर लगे चश्मे जैसा चश्मा मांगता तो वह मूर्ति पर से चश्मा उतार कर ग्राहक को दे देता था

मूर्ति किसकी थी और वह कहां लगाई गई थी?

(i) मूर्ति किसकी थी और वह कहाँ लगाई गई थी ? Answer : मूर्ति नेताजी सुभाषचंद्र बोस की थी, जो संगमरमर की थी। इसे शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर लगाया गया था।