आपका पहला ट्राइमेस्टर पूरा होने में केवल 4 हफ्ते बचे हैं। इन हफ्तों के दौरान वाकई आपका समय तेजी से बीत जाएगा। आपके लिए अभी भी किसी ऐसे टॉक्सिं, विषाणुओं या केमिकलों से खुद को बचाना महत्वपूर्ण होगा, जो आपके अंदर विकास कर रहे शिशु को नुकसान पहुँचा सकते हों। आपको छुपकर रहने की जरूरत नहीं है, पर सावधान रहें और स्वस्थ और सेहतमंद रहने पर ध्यान केंद्रित करें। Show
खाने की इच्छा: इस हफ्ते भी आपको उलटी होने का एहसास हो सकता है और आप कुछ खास खाद्य पदार्थ खाने को लेकर अच्छा महसूस नहीं कर सकती हैं। कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि शिशु को संभावित रूप से हानिकारक खाद्य पदार्थों से बचाने का यह एक कुदरती तरीका होता है। यदि आपको कुछ खाने की अधिक इच्छा हो रही हो, तो उसे पूरा करें, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वे कितनी अटपटी हैं। एक बार में थोड़ा-थोड़ा खाएं, ताकि आप देख सकें कि आपका शरीर उस खाने के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देता है। निश्चित रूप से, अपनी खाने की इच्छाओं पर थोड़ी लगाम लगाना भी जरूरी होगा, खासकर यदि यह काफी तीव्र हो जाएं या आपको चॉक खाने की प्रबल इच्छा जागने लगे। जब आप 8 हफ्तों की गर्भवती होती हैं, तो आपको व्यायाम के प्रति पहले जैसी सहजता अनुभव नहीं होगी। आप हांफने जैसा या जल्द थकने का अनुभव कर सकती हैं। ऐसे में आपको अपने व्यायाम तरीकों में बदलाव लाने के पर विचार करना होगा, जो कि कम कठोर और कम असर करने वाले हों। रोजाना चलना-फिरना और अपनी दिनचर्या में कुछ व्यायाम और हल्की गतिविधियाँ शामिल करना अहम होगा। गर्भावस्था के दौरान योग का अभ्यास करना कमाल की चीज होगी। हम इसकी खूबियों को बयां नहीं कर सकते। जिन महिलाओं का गर्भावस्था में अधिक वजन बढ़ जाता है, उनके लिए प्रसव अधिक कठिन हो सकता है और मोटापे से जुड़ी जटिलताओं को लेकर उन्हें अधिक खतरा बना रहता है। In this article
कुछ डॉक्टर आपके पेट पर दबाव डालकर ब्रीच शिशु की अवस्था बदलने का प्रयास कर सकते हैं। इसे अंग्रेजी में एक्सटर्नल सेफेलिक वर्जन (ईसीवी) कहा जाता है। सभी महिलाओं का ईसीवी नहीं किया जा सकता है और यदि स्वास्थ्य समस्याएं हों, तो ऐसा करने का प्रयास भी नहीं किया जाता। यदि प्रसव नलिका में शिशु के सिर की बजाय पहले नितंब या पैर आ जाएं, तो योनि के जरिये प्रसव करवाना मुश्किल हो सकता है। इस वजह से अधिकांश डॉक्टर ब्रीच शिशु की डिलीवरी के लिए सिजेरियन ऑपरेशन को सबसे सुरक्षित विकल्प मानते हैं। पेट में उल्टा बच्चा (ब्रीच) होने का क्या मतलब है?पूरी गर्भावस्था के दौरान आपका शिशु गर्भ में घूमता रहता है और अपनी अवस्था बदलता रहता है। जब आप गर्भावस्था के अंतिम चरण पर पहुंचती हैं, करीब 36 सप्ताह के आसपास तो अधिकांश शिशु श्रोणि में सिर नीचे वाली अवस्था में आ जाते हैं।जो शिशु सिर नीचे की अवस्था में हो और उसका चेहरा आपकी रीढ़ की हड्डी की तरफ हो तो इसे एंटीरियर अवस्था कहा जाता है। यह गर्भस्थ शिशु की जन्म लेने की सबसे आम अवस्था होती है और नॉर्मल डिलीवरी के लिए यह सबसे आसान रहती है। कभी-कभार शिशु उल्टी अवस्था में होते हैं। जब शिशु के सिर की बजाय उसका नितंब नीचे की तरफ हो, तो इस अवस्था को अंग्रेजी में ब्रीच पॉजिशन कहा जाता है। इसका मतलब है कि सिर की बजाय शिशु का नितंब या पैर पहले बाहर आएंगे। तीसरी तिमाही के दौरान तक ब्रीच अवस्था आमतौर पर अस्थाई होती है। बहुत से शिशु जन्म से पहले घूमकर सिर नीचे वाली अवस्था में आ जाते हैं। हालांकि, यदि 36 सप्ताह की गर्भावस्था के बाद भी आपका शिशु गर्भ में उल्टा ही है, तो उसके सीधी अवस्था में आने की संभावना बहुत कम होती है। ब्रीच की अलग-अलग अवस्थाएं कौन सी हैं?गर्भ में आपके शिशु की अवस्था को देखते हुए कई तरह की ब्रीच अवस्थाएं (प्रेजेंटेशन) हो सकती हैं।कम्प्लीट ब्रीच जब शिशु का नितंब नीचे की तरफ हो और कूल्हे और घुटने मुड़कर पालथी वाली अवस्था में हों। आपको अपने पेट के निचले हस्से में शिशु के पैर चलाने की हलचल महसूस हो सकती है। इनकम्प्लीट ब्रीच इसमें शिशु का एक घुटना इस तरह मुड़ा होता है कि उसका वह पैर नितंब के साथ लगा होता है, वहीं दूसरी टांग इस तरह फैली होती है कि उसका पैर चेहरे के नजदीक होता है। फ्रेंक ब्रीच फ्रेंक ब्रीच अवस्था में शिशु की दोनों टांगे ऊपर की तरफ फैली होती है, जिससे दोनों पैर उसके चेहरे के पास होते हैं। सिंगल फुटलिंग ब्रीच सिंगल फुटलिंग ब्रीच अवस्था में शिशु का एक पैर ग्रीवा की तरफ होता है। डबल फुटलिंग ब्रीच डबल फुटलिंग ब्रीच अवस्था में शिशु के दोनों पैर ग्रीवा की तरफ होते हैं। ब्रीच गर्भावस्था होने के क्या कारण होते हैं?पेट में शिशु के उल्टा होने का आमतौर पर कोई स्पष्ट कारण नहीं होता। कुछ कारक शिशु के ब्रीच अवस्था में होने का खतरा बढ़ा देते हैं, जैसे कि:
मुझे कैसे पता चलेगा कि पेट में बच्चा उल्टी अवस्था में है?यदि आपका शिशु उल्टी अवस्था में हो तो जब उसके सिर का दबाव आपके मध्यपट (डायाफ्राम) पर पड़ता है तो आपको पसलियों के नीचे असहजता और श्वासहीनता महसूस हो सकती है। आपको अपने मूत्राशय और पेट के निचले हिस्से में भी शिशु के पैरों की प्रबल हलचल महसूस हो सकती है।तीसरी तिमाही की शुरुआत में डॉक्टर आपके पेट पर हाथ लगाकर और शिशु के सिर, पीठ और नितंब को महसूस करके बता सकती हैं कि आपका शिशु किस अवस्था में है। कुछ शिशु इस चरण पर उल्टी अवस्था में होते हैं मगर अधिकांश शिशु अगले दो महीनों में अपनी अवस्था बदल लेते हैं। करीब 36 सप्ताह के आसपास यदि आपकी डॉक्टर को लगे कि शिशु ब्रीच अवस्था में है, तो आपको शायद अल्ट्रासाउंड स्कैन के जरिये इसकी पुष्टि करवानी होगी। गर्भावस्था के अंतिम चरण में शिशु ब्रीच अवस्था में हो तो क्या होगा?जो शिशु गर्भावस्था के अंत तक भी पेट में उल्टी अवस्था में हों, तो उनके अपने आप सीधी अवस्था में आने की संभावना बहुत ही कम होती है। अधिकांश ब्रीच शिशुओं का जन्म सिजेरियन ऑपरेशन के जरिये होता है, मगर इस चरण पर पहुंचने से पहले आपके शिशु को सिर नीचे वाली अवस्था में लाना शायद संभव हो सकता है।कुछ डॉक्टर शिशु को सीधी अवस्था में लाने का प्रयास कर सकते हैं। हाथ से की जाने वाली इस प्रक्रिया को एक्सटर्नल सेफेलिक वर्जन (ईसीवी) कहा जाता है। ईसीवी की प्रक्रिया 36 सप्ताह की गर्भावस्था से लेकर प्रसव शुरु होने तक आजमाई जा सकती है। यदि आप भी ईसीवी करवाने का निर्णय लें, तो यह केवल अनुभवी डॉक्टर के द्वारा ही की जानी चाहिए। यह प्रक्रिया अस्पताल में की जाएगी, आमतौर पर डिलीवरी रूम या ऑपरेशन थियेटर के पास ताकि यदि कोई समस्या हो तो तुरंत सी-सेक्शन डिलीवरी की जा सके। इस प्रक्रिया से पहले, इसके दौरान और बाद में शिशु के दिल की धड़कन पर नजर रखी जाएगी। ईसीवी करवाने की सलाह सभी महिलाओं को नहीं दी जाती है। यदि कोई जटिलताएं हों या आपके शिशु के स्वास्थ्य को लेकर कोई चिंता हो, तो यह प्रक्रिया नहीं आजमाई जाएगी। उदाहरण के तौर पर यदि आपको हाल ही में योनि से रक्तस्त्राव हुआ है या आपके गर्भ में जुड़वा या इससे ज्यादा शिशु हैं, तो शिशु की अवस्था बदलने की कोशिश करना सुरक्षित नहीं होगा। ईसीवी के कारगर साबित होने की संभावना तब और ज्यादा होती है जब आप पहले भी माँ बन चुकी हों या गर्भ में पर्याप्त एमनियोटिक द्रव हो। हालांकि, कई बार शिशु अपनी स्थिति से हिलता नहीं है या फिर दोबारा ब्रीच अवस्था में आ जाता है, इसे अंग्रेजी में पर्सिसटेंट ब्रीच प्रेजेंटेशन कहा जाता है।। यदि आपका शिशु 36 सप्ताह की गर्भावस्था में ब्रीच अवस्था में हो, तो डॉक्टर आपके साथ डिलीवरी के विकल्पों पर चर्चा करेंगी और आपके लिए बेहतर कदम चुनने में मदद करेंगी। अगर पेट में बच्चा उल्टा हो तो क्या नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है?अधिकांश डॉक्टर ब्रीच अवस्था वाले शिशु का जन्म सिजेरियन के जरिये करवाने की सलाह देते हैं। यदि आप नॉर्मल डिलीवरी करवाना चाहें, तो डॉक्टर आपके साथ इसके संभावित जोखिम और फायदों पर चर्चा करेंगी। निम्न स्थितियों में डॉक्टर नॉर्मल डिलीवरी पर विचार कर सकती हैं:
प्रसव के दौरान आप और आपके शिशु पर नजदीकी निगरानी रखी जाएगी। वैसे, आपको सिजेरियन ऑपरेशन के लिए भी तैयार रहना होगा, क्योंकि यदि प्रसव सही से आगे न बढ़े या प्रसव से जुड़ी कोई जटिलताए हों तो सी-सेक्शन करना पड़ेगा। यदि शिशु ब्रीच अवस्था से न पलटे तो क्या मेरी सिजेरियन डिलीवरी होगी?ब्रीच अवस्था वाले अधिकांश शिशुओं का जन्म सिजेरियन ऑपरेशन के जरिये होता है, क्योंकि बहुत से विशेषज्ञ इसे ही ब्रीच शिशु की डिलीवरी का सबसे सुरक्षित तरीका मानते हैं। आपको सिजेरियन करवाने की जरुरत होगी या नहीं, यह निम्नलिखित बातों पर निर्भर करेगा:
इस बीच ऑपरेशन से ठीक पहले भी अस्पताल में आपका अल्ट्रासाउंड किया जाएगा ताकि पता चल सके कि शिशु ने अपनी अवस्था बदली है या नहीं। पूर्व नियोजित ब्रीच सिजेरियन ऑपरेशन भी अन्य पूर्वनियोजित सिजेरियन की तरह ही होता है। अंतर सिर्फ इतना है कि जन्म के समय सिर की बजाय उसकी टांगे या नितंब पहले बाहर आएंगे। यदि शिशु ब्रीच अवस्था में हो और प्रसव समय से पहले शुरु हो जाए तो क्या होगा?यदि आपका प्रसव समय से पहले शुरु हो जाए या पानी की थैली ड्यू डेट या पूर्व नियोजित सिजेरियन की तारीख से पहले ही फट जाए तो तुरंत डॉक्टर से बात करें।ब्रीच शिशु का घर पर जन्म करवाने की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि ब्रीच शिशु की नॉर्मल डिलीवरी करवाने में जटिलताएं होने का उच्च जोखिम रहता है। यदि गर्भ में आपका शिशु उल्टा हो और आपका प्रसव समय से पहले (प्रीमैच्योर) शुरु हो जाए तो डॉक्टर शायद आपातकालीन सिजेरियन डिलीवरी ही करेंगी। यदि शिशु उल्टी अवस्था में ही रहे तो क्या जोखिम हो सकते हैं?यदि आपका शिशु ब्रीच अवस्था में ही रहे तो आपको कुछ बातों की जानकारी होना जरुरी है।जन्म से पहले यदि शिशु का नितंब जन्म लेने की अवस्था में नीचे नहीं आया है और उससे पहले ही आपकी पानी की थैली तेज बहाव के साथ फट जाए, तो ऐसे में गर्भनाल का बहकर नीचे आपकी योनि में आने का खतरा रहता है। हालांकि, ऐसा होना दुर्लभ है, मगर फिर भी आपको इसकी जानकारी होनी चाहिए। यदि आपकी पानी की थैली फट जाए और आप गर्भनाल को नीचे की तरफ महसूस कर पाएं या देख पाएं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और एम्बुलेंस को बुलाएं। जब तक आप एम्बुलेंस के आने का इंतजार कर रही हों, तब तक आप अपने हाथों और घुटनों के बल आ जाए और सिर को नीचे और नितंबों को ऊपर की ओर उठा कर रखें। यह अवस्था शायद आपको अजीब लगे, मगर इससे आपके शिशु का वजन गर्भनाल से हट जाएगा, जिससे शिशु को अपरा (प्लेसेंटा) के जरिये अब भी ऑक्सीजन मिलती रहेगी। गर्भनाल को छूने या इसे वापिस अंदर डालने की कोशिश न करें। जब आप एम्बुलेंस में होंगी, तो उसमें मौजूद चिकित्सकीय स्टाफ आपकी और आपके शिशु की मदद करेगा। अस्पताल पहुंचने पर शायद आपको सिजेरियन डिलीवरी के लिए तुरंत ऑपरेशन थियेटर ले जाया जाएगा। ब्रीच शिशु की नॉर्मल डिलीवरी के दौरान ब्रीच अवस्था वाले शिशु की नॉर्मल डिलीवरी करवाने में सबसे बड़ा खतरा तब होता है जब शिशु का शरीर बाहर आ जाता है, मगर सिर अंदर ग्रीवा में फंसा रहता है। इससे खरोंच लगने, जन्म के समय चोट लगने या मृत्यु होने का भी खतरा बढ़ जाता है। शिशु को जल्दी जन्म दिलवाने के लिए डॉक्टर शायद फोरसेप्स डिलीवरी या कोई अन्य आपातकालीन तरीके अपनाएंगी। प्रोलेप्स्ड गर्भनाल भी एक अन्य समस्या है, जिसमें गर्भनाल शिशु की डिलीवरी से पहले ही प्रसव नलिका से बाहर खिसक जाती है। यदि गर्भनाल पर दबाव हो या यह दब ही जाए तो शिशु तक ऑक्सीजन और खून का प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है। इससे वह के भ्रूण संकट में आ सकता है। ऑक्सीजन की कमी या डिलीवरी में किसी भी तरह की देरी का असर शिशु के मस्तिष्क पर पड़ सकता है। गंभीर मामलों में इससे मस्तिष्क स्थाई तौर पर क्षतिग्रस्त हो सकता है या यह जानलेवा भी हो सकता है। यदि नॉर्मल डिलीवरी के दौरान ऐसी कोई भी स्थिति उत्पन्न हो तो आपके शिशु का जन्म आपातकालीन सिजेरियन ऑपरेशन के जरिये करवाया जाएगा। जन्म के बाद 36 सप्ताह की गर्भावस्था पर या इसके बाद भी शिशु ब्रीच अवस्था में हों या 36 सप्ताह से पहले ही जिन शिशुओं का जन्म ब्रीच अवस्था में हुआ हो, उनकी अल्ट्रासाउंड जांच की जानी चाहिए। इससे कूल्हों से जुड़ी स्थिति यानि डवलपमेंट डिस्प्लेसिया ऑफ द हिप (डीडीएच) की जांच हो जाती है। इस स्थिति में कूल्हे के बॉल और सॉकेट जोड़ पूरी तरह से विकसित नहीं होते। यदि आपके गर्भ में एक से ज्यादा शिशु थे, तो सभी शिशुओं को अल्ट्रासाउंड जांच होनी चाहिए, फिर चाहे उनमें से केवल एक शिशु ही ब्रीच स्थिति में हो, तो भी। यदि डॉक्टर को लगे कि आपके बच्चे के कुल्हे में कोई समस्या है, तो वे आपको बच्चों के हड्डी के डॉक्टर के पास भेज सकती हैं। वहां उसकी और विस्तृत जांच हो सकेंगी। क्या प्राकृतिक उपायों से शिशु की ब्रीच अवस्था बदल सकती है?कुछ ऐसे प्राकृतिक उपाय हैं, जिनसे आप शिशु की नितंब नीचे वाली अवस्था बदलने का प्रयास कर सकती हैं।ध्यान रखें कि ये तकनीकें कितनी प्रभावी हैं, इसे लेकर ज्यादा प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि, कुछ गर्भवती महिलाओं का मानना है कि ये उपाय उनके लिए कारगर साबित हुए हैं। अधिकांश महिलाएं 34 सप्ताह की गर्भावस्था के बाद ही इन तकनीकों को आजमाती हैं। इन वैकल्पिक तरीकों को आजमाने से पहले हमेशा अपनी डॉक्टर से बात करें। साथ ही, सुनिश्चित करें कि जब आप इन्हें आजमाएं तो आपके आस-पास मदद के लिए कोई हो। यदि आपको चक्कर आएं या मदद की जरुरत लगे तो वे तैयार होंगे। नी-टू-चेस्ट अवस्था इसमें गुरुत्व बल के जरिये शिशु को सिर नीचे वाली अवस्था में लाने का प्रयास किया जाता है। जमीन पर चटाई बिछाकर घुटने टेक कर बैठें और आगे की तरफ झुकें। आपके कूल्हे हवा में रहेंगे और सिर, कंधे जमीन पर टिकेंगे। इस अवस्था में आने का मुख्य उद्देश्य शिशु को थोड़ा ऊपर की तरफ और श्रोणि क्षेत्र से दूर करना होता है, ताकि उसे अपनी अवस्था बदलने के लिए पर्याप्त जगह मिल जाए। अपनी जांघों से पेट को दबने न दें और अपने घुटनों को भी एक-दूसरे से दूर रखें। हर दिन आप 15 से 20 मिनट तक इस अवस्था में रहें। पीठ के बल लेटें और कूल्हों को हल्का सा ऊंचा रखें (ब्रीच टिल्ट) अपने कूल्हों के नीचे एक तकिया लगा लें और अपने घुटनों को मोड़ लें। अपने सिर के नीचे भी एक तकिया लगा लें ताकि आपकी पीठ समतल न रहे। ऐसा 10 से 15 मिनट तक दिन में दो बार करें। कोशिश करें कि आप ऐसा तब करें जब आपका पेट थोड़ा खाली हो और आपका गर्भस्थ शिशु सक्रिय व क्रियाशील लग रहा हो। यदि गर्भावस्था में आपको सिरदर्द, श्रोणि क्षेत्र में दर्द या कूल्हों में दर्द की शिकायत रही थी, तो इन तकनीकों को आजमाने से पहले डॉक्टर से पूछ लें। साथ ही, यदि आपको इन्हें करते हुए किसी भी समय दर्द महसूस हो, बेहोशी या चक्कर आएं तो इन्हें करना बंद कर दें। दोबारा आजमाने से पहले डॉक्टर से पूछ लें। प्रसवपूर्व योग आपने शायद यह भी सुना हो कि प्रसवपूर्व योग की कुछ मुद्राएं और आसन ब्रीच शिशु को पलटने में मदद कर सकते हैंं। मगर अभी यह स्पष्ट नहीं है कि ये ब्रीच गर्भावस्था में किस तरह मदद करते हैं। वैसे गर्भावस्था के दौरान आपको कोई भी व्यायाम करते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। यदि आप प्रसवपूर्व योग आजमाना चाहें तो पहले डॉक्टर से पूछ लें कि क्या ये आपके और गर्भस्थ शिशु के लिए सही रहेगा या नहीं। यदि डॉक्टर इसकी अनुमति दे दे, तो प्रसवपूर्व योग में अनुभव प्राप्त प्रशिक्षक की सलाह का पालन करें। कुछ प्रेगनेंसी मसाज थेरेपिस्ट या मालिशवाली भी यह दावा कर सकते हैं कि उन्हें ब्रीच शिशुओं को सीधी अवस्था में लाने का अनुभव है, मगर बेहतर है कि आप सावधानी बरतें। गर्भ में शिशु की अवस्था बदलना इतना आसान नहीं है और यह अस्तपताल में अनुभवी डॉक्टर द्वारा ही किया जाना चाहिए, बशर्ते यह आपके लिए सुरक्षित हो। मसाज थेरेपिस्ट या मालिशवाली को शायद आपके चिकित्सकीय इतिहास या जटिलताओं के बारे में पता न हो। ऐसे में कोई भी गलत तकनीक आपके और गर्भस्थ शिशु के लिए गंभीर समस्या पैदा कर सकती है। अंग्रेजी के इस लेख से अनुवादित: Breech delivery हमारे लेख पढ़ें:
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आठवें महीने में बच्चे का सिर किधर रहता है?उसका वजन भी लगभग 1.6 से 1.8 किलो के बीच होगा। देखने में वह अब एक नवजात शिशु जैसा ही लगेगा। उसके सभी प्रमुख अंगों का विकास हो चुका है फेफड़ों को छोड़कर। वह आपके गर्भाशय में हाथ-पैरों को सिकोड़े हुए नीचे की ओर सिर वाली पोजिशन में आ गया होगा।
8 वें महीने में बच्चे की हलचल कितनी बार होती है?8 मंथ्स प्रेग्नेंसी में बेबी मूवमेंट
आप पा सकती हैं कि आप अपने शिशु की ओर से लगातार कम हलचल महसूस कर रही हैं, क्योंकि आपका नन्हा शिशु अब आपके गर्भाशय को अधिक भरता है और उसमें खिंचाव के लिए कम जगह होती है। यदि आप इन गतिविधियों को महसूस करने के आदी हैं तो यह तनावपूर्ण हो सकता है! लेकिन शिशु को वास्तव में कम हिलना-डुलना नहीं चाहिए।
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